Sunday, October 10, 2010

रो रही है हवेलियाँ

ऊँचे-ऊँचे रेत के धीरे,तेज धूप के साथ सर्पिनी सी नज़र आने वाली सड़क से हम आपको लिए जा रहे है जयपुर से उत्तर पूर्व में लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर फतेहपुर शेखावाटी में | यहाँ की भव्य और कलात्मक हवेलियाँ आज भी किसी तारणहार की बाट जोह रही हैं  |  वीरान पड़ी रहने वाली हवेलियों में  प्रतिस्थापन की  सुगबुगाहट तो जागने लगी हैं लेकिन अभी  भी हालत ऊँट के मुंह में जीरे के सामान है | पेरिस के एक विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर नादीन ली प्रिंस 20 सालों से यहाँ हवेलियों के संरक्षण में जुटी हैं | नादीन ऩे रामगढ रोड पर एक हवेली का जीर्णोद्धार करा उसमें आर्ट गेलेरी भी खोल रखी  है |    

निकटवर्ती झुंझुनू के मंडवा कस्बे में करीब लगभग बीस साल पहले जब ठाकुर केसरी सिंह ऩे अपने गढ़ और हवेली को पर्यटकों के लिए नए अंदाज में खोला तो उनके प्रयास पर्यटकों को लुभाने में कामयाब रहे | पर्यटकों को स्थापत्य कला को देखने के अलावा सुख-सुवधाएँ भी मिलने लगीं तो उनकी संख्या भी दिन-ब-दिन बढ़ने लगी | पर्यटकों की इस क्षेत्र में बढती आवाजाही के चलते माहौल बदलने लगा और  आस पास कई बड़ी होटलें,रिसोर्ट्स,रेस्टोरेंट्स खुलने लगे | इससे यहाँ की प्राचीन स्थापत्य कला तो संरक्षित हुई, साथ ही लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले और  क्षेत्र का विकास हुआ सो अलग | कुल मिलाकर मंडावा के इस बदले रूप ऩे वहां की तस्वीर ही बदल डाली | मंडावा पर्यटकों को किस कदर रास आ रहा है, इसका अंदाजा यहाँ आने वाले पर्यटकों की तादाद से लगाया जा सकता है | यहाँ के लोगों ऩे हवेलियों का इस तरह से कायाकल्प किया है की पर्यटक अपने आप को रोक नहीं पाते | पाँच बड़ी और पुरानी हवेलियों को हैरिटेज लुक दिया गया है | जहाँ इक्का-दुक्का पर्यटक यहाँ आता था, वहीँ अब लगभग सभी हवेलियाँ पर्यटकों से भरी रहती हैं | बाजार विकसित हो गए, गांवों में रोजगार बढ़ गए | ज्यादातर पर्यटक यहाँ की फ्रेस्को पेंटिंग और हवेलियों की स्थापत्य और वास्तु कला देखने के लिए आते हैं | गौरतलब है क़ि  इस तरह की पेंटिंग भारत के अलावा सिर्फ इटली में ही देखी जा सकती है | इन हवेलियों को देखने के यूँ तो दुनियाभर से पर्यटक आते हैं, पर उनमे भी अधिकतर स्पेन,फ्रांस और इटली से आते है | हवेली व्यवसाय उद्योगपतियों  को कितना रास आ रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की जाने माने ओबेरॉय समूह ऩे यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी | कई बड़े उद्योग समूह और व्यवसायी यहाँ  होटल खोलने में दिलचस्पी ले रहे हैं | 

मंडावा के अलावा फतेहपुर, रामगढ़,नवलगढ़ और लक्ष्मणगढ़ में भी सैंकड़ों मनमोहक हवेलियाँ हैं | पर्यटकों की बढती संख्या देख कर भी हवेलियों के मालिक भी इनकी सुध लेने से बेसुध बैठे हैं |  शायद सभी हवेलियाँ खुशनसीब नहीं हैं | जहाँ सालों पहले बिडला से लेकर गोयनका,खेतान,मोदी,मित्तल, सिंघानिया,बजाज, पोद्दार,नेवटिया,गनेडीवाल,देवडा, केडिया,भरतिया, चमडिया, डालमिया परिवारों के वंशजों की किलकारियां गूंजती थीं,वहीँ आज इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है | कहते हैं नगर सेठों की विशाल हवेलियों में कभी नौकरों चाकरों के परिवार का इतना हुजूम रहता था क़ि इन हवेलियों की रसोई दिन के आठों पहर कड़ाही कूंचिये की आवाजों से गुलजार रहती थी  और आज हालत यह है क़ि इन हवेलियों के कमरों पर लगे तालों के जालों तक को साफ़ करने वाला कोई नहीं है |  कुछ केवल चौकीदारों के भरोसे चल रहीं हैं तो कुछ पर सिर्फ ताले लटक रहे हैं | हवेलियाँ कहीं प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बनी हुई हैं तो कहीं अतिक्रमण और भूमाफियों के चंगुल में फंस कर रह गयीं हैं | इन सबके बावजूद भी यह एक ऐसी संपत्ति है, जिस पर अगर ध्यान दिया जाए तो पर्यटकों को चुम्बक की मानिंद अपनी ओर खींच सकती है  | हवेलियों का पुनर्स्थापन अपनी पारंपरिक धरोहर को तो संरक्षित करेगा  ही साथ ही साथ क्षेत्र के सरपट विकास में भी महती भूमिका निभाएगा, अब इन्तजार तो बस इस बात का है क़ि ये कुम्भ्करणी नींद कभी टूटेगी या फिर इस अनमोल धरोहर को अपने साथ ले डूबेगी | 

3 comments:

  1. सेटिंग मे जाकर शब्दपुष्टीकरण हटा देवे , टिप्पणी देने में सुविधा होती है
    अच्छा प्रयास है,बधाई

    ReplyDelete
  2. हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है।
    आपको और आपके परिवार को नवरात्र की शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  3. सार्थक लेखन के लिये आभार।

    ReplyDelete