Friday, December 17, 2010

गायब हो गया दादूद्वारा

सुंदरदासजी ऩे जिस स्थल पर बैठकर श्रेष्ठ 48 ग्रंथों की रचना की थी, वह फतेहपुर का दादू द्वारा अपनी पवित्रता खो चुका है | लगातार यह स्थल अपनी पहचान खोता जा रहा है तथा भूमाफियाओं की गिध दृष्टी इस स्थल को नेस्तानावूद करने पर तुली हुई है | दादू द्वारे को एक हॉस्टल के रूप में प्रयुक्त कर एक ओर जहाँ उसकी पवित्रता को नष्ट किया गया है वहीँ दादू द्वारे के भीतर जगह जगह दादूपंथियों के स्मृति स्थल थे, उन्हें समाप्त किया जा रहा है | दादू पंथ का एक जीता जागता इतिहास यहाँ काल के कराल पन्नो पर फडफडा रहा है | 
सुन्दरदास जी को यहाँ प्रयागदास लेकर आये थे | स्वयं प्रयागदास एक उच्च कोटि के कवि थे, उन्होंने स्वयं पच्चीस हज़ार से ज्यादा पद्य लिखकर अक्षय कीर्ति पाई थी | बाद की पीढ़ी में चातार्दास, हरिदास, भीखजन जैसे कितने ही मालूम ना मालूम संतों की यह कर्मस्थली रही ,इस पवित्र स्थल पर बैठ सैंकड़ों की संख्या में मौलिक ग्रन्थ लिखे गए तथा सुन्दरदास के ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ समय समय पर तैयार करवाई गयीं | कहने वाले लोग कहते हैं- कल तक यहाँ बोरियाँ भरी जा सके, इतने अनमोल ग्रन्थ हुआ करते थे, पर आज उन ग्रंथों का क्या हुआ? कौन ले गया इस अप्रकाशित सम्पदा को, इसका ठीक ठीक जवाब किसी  के पास नहीं है| लोग निरंतर इस द्वारे की अक्षय सम्पदा को बेच-बेच कर खा रहा है |  जब शहर के बौद्धिक लोगों का जन सम्पदा के बारे में सरोकार नहीं रहता है तो यही हश्र हुआ करता है | एक भू चोर के लिए तो दादू दारे की ज़मीन भी उसी महत्व की है जैसी एक सामान्य नोहरे क़ि ज़मीन | उसे संतों की विरासत से क्या लेना देना ? पैसे को आखिरी सत्य मानने वाले लोगों  के लिए धरोहर की संस्कृति कोई मायने नहीं रखती | जैसे कुए बावड़ियाँ बेचीं जा सकती हैं वैसे ही मंदिर दादू द्वारे भी बेचे जा सकते हैं | आँखों पर पट्टी बाँध कर अधर्म का काम करने वाले लोगों  के लिए कुछ भी दूभर नहीं है | कुछ शताब्दियों पूर्व यहाँ का दादू द्वारा अपनी विशालता के लिए विख्यात था, पर नियंत्रण हटते ही यह धरोहर विभिन्न गिद्ध दृष्टि वाले लोगों ऩे हड़प ली | अब शोध करने के बाद भी यह पता लगाना मुश्किल है की कौन जगह प्रयागदास की समाधि है और कौन जगह हरिदास की तो कौन जगह अन्य संतों की | संरक्षण के अभाव में लोगों ऩे समाधियों को उखाड़ फेंका और अपने नोहरे, प्रतिष्ठान, घर कायम कर लिए | इस लूट में जिसको जो मिला वही उसका मालिक हो गया | 
फतेहपुर निरंतर एक उपेक्षित शहर की पहचान बनाता जा रहा है | यहाँ किसी को उपरोक्त तरह के काम करने की फुर्सत नहीं है " होने दो- जो नष्ट हो रहा है तो हम क्या करें"| यह यहाँ के वासिंदों का आदर्श उदघोष वाक्य है | सुन्दरदास के बहुत थोड़े से ग्रन्थ प्रकाशित हो पाए थे , बाकी सभी ग्रन्थ तथा चतुर्भुजदास एवं प्रयागदास के ग्रन्थ तो अप्रकाशित ही थे | इसी प्रकार के बाद के कवि जो यहाँ रहे , उनके ग्रन्थ भी यहीं थे | आज शोधार्थियों को उपरोक्त सभी संतों पर काम करने पर निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि इनकी मूल हस्त लिखित ग्रन्थ सामग्री खुर्द-बुर्द हो गयी| सुन्दरदास के परम सखा प्रयागदास भी श्रेष्ठ कवि थे | आज उन पर शोध खोज किये जाने की आवश्यकता है, पर सामग्री के अभाव में यह कार्य संभव नहीं है | दादूपंथी एक बौद्धिक जमात थी, इसके सभी संत बुद्धिमान एवं साहित्य रचनाधर्मी थे | धार्मिक भावना से अनुप्राणित होकर उन्होंने यहाँ बैठकर अनेक ग्रंथों की रचना की | दूर-दूर हलकों के दादूपंथी साधू , तत्कालीन समय के इस विख्यात दादू द्वारे में रहने के लिए आया करते थे | आज़ादी से पूर्व जब यहां दादू द्वारे के एक हिस्से पर एक बनिए द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया तो समूचे फतेहपुर शहर की तरफ से इसका विरोध हुआ तथा इस मुद्दे पर प्रख्यात पत्रकार, इतिहासज्ञ एवं लेखक पंडित झाबरमल शर्मा ऩे कलम चलाई | उसके बाद दादुद्वारे की पैरोकारी करने वाला कोई नहीं रहा और पच्चीस बीघे में फैला दाद द्वारा अब पच्चीस गुना पच्चीस फीट में भी नहीं रह गया है | फतेहपुर पर्यटकों की नगरी है | राजस्थान के पर्यटक नक़्शे में वह एक प्रमुख स्थान रखता है | अगर संत सुन्दरदास के इस भक्ति स्थल को कबीर-मीरां आदि के स्थलों की भांति राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया जाए तो नगर में एक अन्य आकर्षण हो सकता है | दादू दयाल के शिष्य सुन्दरदास शुरू से ही एक भ्रमणशील व्वाक्ति थे | वे एक जगह बहुत कम रहे, पर फतेहपुर में उनका निवास काल सर्वाधिक लम्बा था क्योंकि ग्रन्थ रचना के लिए उन्हें यह स्थल और यहाँ का पर्यावरण अत्यधिक उत्तम लगा | यहाँ रहने के कारण उनकी खड़ी बोली में शेखावाटी राजस्थानी का असर भी दिखाई देता है | कितने ही पहलु हैं जिन पर आज शोध खोज की अत्यंत आवश्यकता है | फतेहपुरवालों को अपनी इस भक्तिमय विरासत पर गर्व करना चाहिए, उन्हें बढ़ चढ़ कर बोलना चाहिए की महाकवि तुलसी के समान प्रसिद्धि रखने वाले कवि सुन्दरदास ऩे हमारे नगर में रहकर अपनी चिंतन सरणी को काव्य रचना के रूप में विराम दिया | काश, वे सारे ग्रन्थ यहाँ होते तो यहाँ का महत्व किसी राष्ट्रीय संग्रहालय से कम न होता |