हालिया रिलीज फिल्म राजनीति का यह प्रसिद्ध गीत सुनकर मुझे ऐसा लगा मानो ये गीत फतेहपुर की सूनी पडी हवेलियों के लिए ही लिखा गया है | कभी रजवाडी शान औ शौकत की पर्याय रही ये हवेलियाँ अपने चिर यौवन काल में सेठों और नौकरों चाकरों से भरी पडी रहती थी | नगर सेठों की शान की प्रतीक एक से एक नयनाभिराम हवेलियाँ सुर्ख लाल जोड़े में सजी दुल्हन सी अपनी रंगत पर कभी इतराती थी, कभी शर्माती थी, किन्तु आज इन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो सर से पाँव तक सफ़ेद साड़ी पहने अपने वैधव्य को कोस रही हों |
इतिहास की पृष्ठ भूमि में जाकर टटोले तो व्यापारिक उद्देश्य से धीरे धीरे एक एक करके सभी हवेलियों के सेठ महानगरों में जाकर बसते रहे और हवेलियाँ सूनी होती रहीं | जब तक वे सेठ खुद ज़िंदा थे, उनका मोह यहाँ की मिटटी में बरकरार था किन्तु शनै - शनै तीन चार पीढियां गुजर जाने के बाद आज की जेनरेशन में वह मोह लुप्त हो गया है | आज की वह जेनरेशन जिनके परिवार को अपनी माटी छोड़े तीन चार पीढियां गुजर चुकी हैं, उन्हें यहाँ के रेतीले टीले और कच्ची गलियाँ अब सुहाते नहीं हैं | अपनी जन्म भूमि में आना उन्हें जी का जंजाल सा लगने लगा है | साल में एक या दो बार जब उन्हें समय मिलता भी है तो वे इधर का रुख करने की बजाय किसी विदेशी पर्यटन स्थल पर जाना अधिक पसंद करते हैं |
हालिया दिनों में यहाँ से गए लोगों में जरुर माटी का मोह बरकरार है लेकिन तीन चार पीढियां गुजरने के बाद कमोबेश यही हालत उनके परिवार की भी होनी है | अगर इस दशा से बचना है तो जल्द ही इस दिशा में सार्थक कदम उठाने होंगे अन्यथा सूनी पडी हवेलियाँ पथराये नैनों से बाट जोहती मानो हमेशा यही कहती रहेंगी
' मोरा पिया मोसे बोलत नाँही ' |
' मोरा पिया मोसे बोलत नाँही ' |
अंकित जी सत्य कहा आपने परन्तु इस ओर कोइ सार्थक प्रयत्न आवश्यक है।
ReplyDeleteदेव मिश्रः
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